Wednesday, July 23, 2025

हरेली पर्व की विलुप्त होती परम्परा आज भी यहां जीवित है, एंटीबायोटिक जड़ी बूटी का होता है वितरण

रिपोर्टर -राजकुमार कश्यप
कांकेर @- छत्तीसगढ़ का पहला पर्व हरेली मे कई किवदंतीयां हैं। जो धीरे- धीर विलुप्त होती जा रही है लेकिन कांकेर जिले के ग्राम डंवरखार मे इस परम्परा को ग्रामीणों ने आज भी जीवित रखा गया है। हरेली के दिन गाँव का यादव परिवार जंगल से ऐसी औषधि युक्त जड़ी बूटीयां वितरित करता है जो बारिश मे होने वाली कई बीमारियां से बचाता है। 
 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अगर देखें तो यह एक तरह से एंटीबायोटिक का कार्य करता है। दरअसल गांव का यादव हरेली के एक दिन पहले बेहद खास किस्म का जड़ी बूटी जंगल से लाता है. और हरेली के दिन बड़े बड़े पात्र मे सुबह 4 बजे उबाल कर गांव के देव स्थल मे लाता है। इसे ग्रामीणों को वितरण करने कि प्रक्रिया शुरु करने से पहले गाँव का गायता गांव के देवी देवता का पूजा अर्चना कर ग्रामीणों को वितरण करता है जिसे प्राप्त करने गांव के प्रत्येक परिवार से लोग पहुँचते हैं जो अपने साथ दाल, चॉवल, नमक, प्याज़ आलू, मिर्च, पैसा जड़ी बूटी के मोल स्वरूप देते हैं। 

 

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